कुद्स दिवस मज़लूमों की मदद और ज़ालिमों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का दिन है

एक्शन मीडिया डेस्क न्यूज़


फिलिस्तीन देश पर अमरीका और ब्रिटेन की मदद से सह्यूनी यहूदियों द्वारा किये गए नाजायज़ क़ब्ज़े और क़ब्ज़े की ज़मीन पर इस्राइल नामक एक नये देश का घट्न किये जाने के विरोध में मनाया जाने वाला अन्तर्राष्ट्रीय दिवस दुनिया भर में यौमे कुद्स के नाम से मश्हूर है। रमजान के आखरी जुमे को यौमे कुद्स के नाम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की शुरुआत मुस्लिम जगत के एक महान रहनुमां हज़रत इमाम ख़ुमैनी के निर्देश से हुई।
इमाम ख़ुमैनी ने दुनिया को इस्राइल के नापाक मंसूबो से आगाह करते हुए कहा के इस्राइल एक कैंसर की तरह है जो पूरे पश्चिमी एशिया को अपनी चपेट में ले लेगा
इमाम ख़ुमैनी के बाद इस्लाम के लगभग सभी बड़े उलामा, मुफ़्ती और मरजाओं के साथ साथ दुन्या भर के बड़े लीडर जैसे महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला ने फिलिस्तीन पर किये गए नाजायज़ इस्राइली क़ब्ज़े का कड़ा विरोध किया।
इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद (स) ने मज़लूमो की हिमायत को अपना धर्म मानने के लिए एक मश्हूर हदीस में फ़रमाया:
जो आदमी भी ऎसी हालत में सुबह करे के उसे अपने मुस्लिम भाईयो के हालात की फ़िक्र न हो वो मुसलमान नहीं है।
कुद्स का ये दिवस सभी धर्मो के लोगो के लिए ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने का एक अनमोल मौक़ा होने के साथ साथ मुसलमानो के लिए एक धार्मिक फरीज़े की भी हैसियत रखता है, जिसमे दुन्या भर में जहाँ कहीं भी ज़ुल्म हो रहा है, जैसे इराक, सीरिया, यमन, सऊदी अरब, पाकिस्तान, कशमीर, बहरैन, बर्मा जैसी सभी जगहें शामिल हैं।


टिप्पणियाँ